डीघ गांव, उत्तर प्रदेश के पास स्थित गंगा नदी का कक्रहवा घाट, दूर-दूर तक अपनी भयावहता के लिए मशहूर था। ये घाट दिन में भले ही शांत और पवित्र दिखता है, लेकिन रात होते ही इसका माहौल बदल जाता। यहां मृतकों का अंतिम संस्कार होता था, और जलती चिताओं की लपटें अंधेरे में एक अजीब रहस्यमयी आभा फैलाती थीं।
लोगों का कहना था कि कक्रहवा घाट पर रात के समय कुछ ऐसा था, जिसे समझ पाना इंसानी बुद्धि के बस में नहीं था। जो भी रात के समय वहां गया, वह या तो कभी लौटकर नहीं आया, या लौटा तो पागलपन की हालत में।
रात्रि का आमंत्रण
एक ठंडी और अंधेरी रात थी। चंद्रमा गंगा के पानी में अपनी धुंधली छवि दिखा रहा था। गांव के एक नौजवान, अर्जुन, को घाट के बारे में कुछ भी मानने से इनकार था। वह इसे सिर्फ अंधविश्वास समझता था। दोस्तों के मजाक और खुद को साहसी साबित करने की जिद में, उसने रात के समय कक्रहवा घाट जाने की ठानी।
अर्जुन ने अपने हाथ में एक टॉर्च ली और चल पड़ा। घाट की ओर जाने वाला रास्ता घने पेड़ों और गंगा की काली लहरों से घिरा था। जैसे ही वह घाट के करीब पहुंचा, एक अजीब-सी ठंडक ने उसे घेर लिया। उसने इसे हवा का झोंका मानकर नजरअंदाज किया।
अंजान साया
घाट पर पहुंचते ही उसने देखा कि एक चिता अब भी जल रही थी। पर वहां कोई नहीं था। न कोई पुजारी, न कोई परिजन। "इतनी रात में चिता जलता कौन छोड़ गया?" उसने खुद से कहा। वह चिता के करीब गया, और तभी उसे अपने पीछे किसी के चलने की आवाज सुनाई दी।
"कौन है?" अर्जुन ने जोर से पूछा। पर जवाब में केवल गंगा की लहरों का शोर था। अचानक, उसकी टॉर्च बुझ गई। घाट पर अब केवल जलती चिता की रोशनी बची थी। अर्जुन को ऐसा लगा जैसे कोई उसकी तरफ घूर रहा हो।
डरावनी सच्चाई
अर्जुन ने चिता के पास झुककर देखने की कोशिश की। तभी चिता की लपटें तेज हो गईं, और उसने देखा कि जलती हुई चिता से एक कंकाल जैसा साया उठ खड़ा हुआ। वह साया अर्जुन की तरफ बढ़ने लगा। उसकी आंखों से आग की लपटें निकल रही थीं, और वह बोल रहा था, "तूने हमें क्यों परेशान किया? यहां कोई भी जिंदा इंसान नहीं आ सकता।"
अर्जुन घबराकर पीछे हटने लगा, लेकिन उसका पैर किसी चीज़ में फंस गया। उसने नीचे देखा तो वहां जलती हुई राख में एक हाथ था जो उसे पकड़ने की कोशिश कर रहा था। अर्जुन चीखने लगा, "मुझे छोड़ दो! मैं यहां गलती से आया हूं!"
अंतहीन चीखें
अर्जुन भागने की कोशिश कर रहा था, लेकिन हर ओर से उसे अजीब-अजीब आकृतियां घेरने लगीं। घाट का माहौल डरावना होता जा रहा था। गंगा का पानी अब लाल रंग का दिखने लगा। अर्जुन की चीखें घाट की दीवारों से टकराकर गूंजने लगीं।
अगली सुबह गांव के कुछ लोग घाट पर पहुंचे। उन्होंने अर्जुन को घाट के किनारे बेहोश पाया। उसका चेहरा सफेद था, और आंखों में एक अजीब-सा खालीपन था। जब उसे होश आया, तो उसने सिर्फ इतना कहा, "कक्रहवा घाट पर मत जाना... वहां कुछ है... जो इंसानों से परे है।"
उस दिन के बाद अर्जुन कभी सामान्य नहीं हो पाया। वह अक्सर घाट की ओर देखता रहता और बड़बड़ाता, "वो मुझे बुला रहे हैं... वो मुझे लेने आएंगे।"
कक्रहवा घाट आज भी वैसा ही है, और लोग कहते हैं कि वहां रात में अनजान आवाज़ें सुनाई देती है जिससे बहुत भय लगता है यहाँ तक की दिन की दोपहर में लोग वह जाने से कतराते है।वहाँ पे कई मौतें हो चुकी है पुराने बुजुर्गों का कहना है की वहाँ पे एक भँवर है पानी में उधर से कभी नाव नहीं जाती है यंहा तक कोई बाहरी छोटी जहाज़ भी आती है वो किनारा छोड़ कर ही गुजरती है क्यूकी उस घाट पे एक लूप जैसी संरचना है जो की घूमते हुए है जो भी उसमें फ़स जाता है वो कभी ज़िंदा वापस नहीं आता है इसी वजह से वो घाट आज भी डरावना
नोट : THE SRP TEAM इस आर्टिकल का किसी भी प्रकार से समर्थन नहीं करता है क्यू की ये घटनायें वहाँ के लोगों द्वारा सुनी और सुनाई गयी है क्यूकी सचाई वही जो पूर्ण रूप से दिखाई दे सुनी सुनाई और अंधविस्वास का SRP TEAM समर्थन नहीं करती है।
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